दरअसल हलाल और झटका किसी जानवर को नही बल्कि काटने के तरीके को कहा जाता है इस्लाम में जो तरीका है उसे कहते है हलाल तरीका यानी ज़िबाह करना भी कह सकते है और बाकी सब झटके का इस्तिमल करते है
गोश्त वो लज़ीज़ खाना है कि शायद दुनिया में बहुत कम लोग ही होंगे जो इससे ना आशना हैं तक़रीबन हर मज़हब व हर क़ौम में ही गोश्त खाया जाता है, जानवर को मार कर खाने का अलग अलग तरीका अलग अलग कौम में रायज है मगर जानवर को ज़बह करने की जो तरक़ीब इस्लाम ने बताई उसमें कई हिकमतें हैं, मुलाहज़ा करें
हलाल और झटके में क्या अंतर है।
हमने इसमें कुछ तरीके बताए है जो हलाल करने में और झटके से जानवर को मारने में अंतर बताएगा ।
1-गिलोटिन
2-बबोटेयर
3-इस्लाम तरीका हलाल
1-गिलोटिन: - ज़्यादातर लोगों के यहां जानवर ज़बह करने का ये तरीक़ा है कि जानवर की गर्दन पर पीछे से छुरा चापड़ या आरे से ऐसा वार करते हैं कि जिससे उसका पूरा सर धड़ से अलग हो जाता है इसे झटके का गोश्त कहते हैं, इसकी साईंसी हैसियत ये है कि झटका करने में उसकी रीढ़ की हड्डी कट जाने के बाईस जानवर का दिमाग फौरन जिस्म से रिश्ता तोड़ देता है और पूरा जिस्म बे हरकत हो जाता है, ज़ख्म से सिर्फ उतना ही खून निकलता है जितना कि उसके आस पास मौजूद होता है बाकी का खून गोश्त में जज़्ब होने लगता है जिससे कि गोश्त बदरंग बे मज़ा और बदबूदार हो जाता है, अक्सर मशीनों से भी जानवर इसी तरह ज़बह किये जाते हैं इसे गिलोटिन कहते हैं
2-बबोटेयर: - दूसरा तरीक़ा ये नया निकाला गया है कि जानवर को एक कटहरे में ले जाया जाता है जहां उसके सर पर एक हथौड़े या भारी चीज़ से चोट दी जाती है इसे बबोटेयर कहते हैं,फिर इस अकड़े हुए मजरूह जानवर को कुछ इस्लामी नकल से ज़बह की शक्ल देते हुए निस्फ गर्दन काटी जाती है मगर इस तरह उसके सर पर चोट की वजह से उसके जिस्म में हिस्टामिन पैदा हो जाती है जो कि क़ुर्आन के उसी हुक्म में शामिल हो जाता है जो टक्कर मारे हुए और लाठी से मारे हुए जानवर को है यानि मना,ऐसे गोश्त से एलर्जी और स्किन प्राब्लम होती है
3-इस्लामी ज़बीहा: - अब आईये इस्लाम का तरीक़ा देखते हैं जब जानवर को लिटाकर उसके गले पर छुरी चलाई जाती है तो खून की नस कटते ही जानवर फौरन बेहोश हो जाता है और उसकी तक़लीफ का एहसाह खत्म हो जाता है, गालेबन ये दुनिया की सबसे आसान मौत है जिसमे बस उतने ही सेकंड की तकलीफ है जितना कि गले पर छुरी चलाने में लगती है शायद 4 से 5 सेकंड, लंदन के एक डॉक्टर लार्ड हावर्ड ने लिखा कि मैंने इस्लाम में ज़बह का वो तरीका देखा है कि बगैर तकलीफ और दर्द के जानवर की मौत पुर सुकून अंदाज़ में होती है मैं यही तमन्ना करता हूं कि मुझे भी ऐसी ही मौत आये खैर अब आगे बढ़ते हैं चुंकि हराम मग्ज़ तक छुरी नहीं चलाई जाती इसलिए दिमाग का ताल्लुक जिस्म से बना रहता है दिल से लेकर सर तक जो खून की रगें जाती हैं उनसे तेज़ी से खून बाहर आता है जिससे जानवर तड़पने लगता है और इसी हालत में अपने पैरों को खूब झटकता है जिससे कि जिस्म के आखिरी हिस्से तक रुका हुआ खून भी निकल जाता है यानि गोश्त जिस्म के खून से साफ हो जाता है, इसकी वजह से उसे कई दिन तक भी रखा जाए तब भी वो बे मज़ा नहीं होता और ना ही उसमें बू आती है
आज के दौर में सिवाये मुसलमान के अलावा यहूदी ही ऐसी कौम है जो इस्लाम की तरह ही जानवर को ज़बह करती है मगर चुंकि वो भी इस्लामी अक़ीदे से फिर गए हैं सो उनका ज़बीहा भी मुर्दार के हुक्म में है यानि हराम है,इसलिए हम मुसलमानो का ज़बीहा अल्लाह जल्ला शानहु व उसके महबूब हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के हिसाब से तो है ही मगर साईंसी ऐतबार से भी सबसे बेहतर और अफ्ज़लो आला है
साइंस क्या कहता है हलाल और झटके वाले जानवर के बारे में
जो जानवर हलाल किया जाता है उस जानवर के शरीर से पूरा खून बाहर आजाने की वजह से उसमे ब्लड क्लाटिंग नही होती जब जानवर को हलाल की जाता है तो उसके शरीर से पूरा खून बह कर निकल जाता है जिससे अगर खून में किसी तरह की कोई बीमारी भी हो तो खून के बाहर आजाने की वजह से वो बीमारी गोश्त में नहीं हो पाती जिससे गोश्त पूरी तरह साफ और सॉफ्ट और अगर उस गोश्त को कुछ दिन रखा भी जाय तो ऐसा गोश्त जल्दी खराब नहीं होता और इसका टेस्ट भी अच्छा होता है।
वहीं अगर झटके वाले जानवर की बात की जाय तो झटके के जानवर में खून पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाता उसकी सारी नसें ब्लॉक हो जाती है उसमे उतना ही खून निकलता है जितना कटी गई जगह के आसपास होता है बोहोत थोड़ा और खून की क्लोटिंग बनने लगती है खून गोश्त में मिक्स होने लगता है और अगर खून में बीमारी हो तो वो बीमारी गोश्त में मिक्स हो जाती है और गोश्त में हार्ड हो जाता है और गोश्त में वो टेस्ट भी नही होता जो हलाल तरीके से किए गए जानवर में होता है।और झटके का मीट ज्यादा दिनों तक भी नही रख सकते।
ब्लड क्लोटिंग क्या है?
जब किसी भी शरीर में कोई चोट का कोई घाव हो जाता है तो खून की प्लेटलेट्स और प्लाज़्मा दोनो आपस में मिल कर खून को बहने से रोकने का काम करती है।
इसे ही ब्लड क्लोटिंग कहते है।
मुसलमान क्यों खाते है हलाल मीट?
हलाल तरीके से जानवर के शरीर का पूरा खून बाहर आ जाता है जिससे खून में मौजूद बीमारी भी निकल जाती है और मीट खाने लायक हो जाता है और हलाल मीट ज्यादा दिनों तक भी रखा रहे तो वो जल्दी खराब नहीं होता और इसका टेस्ट भी बेहतर रहता है।
मुसलमान क्यों नहीं खाते झटके का मीट?
पहले तो झटके का मीट खाना इस्लाम में हराम है ।और इस तरह से जानवर को काटने का जो रिवाज है वो बिल्कुल भी गलत है इससे जानवर के अंदर खून जमने लगता है और खून में मौजूद बीमारी जानवर के गोश्त में मिक्स हो जाती है जिसके कारण खाने वाले को भी बीमारी हो सकती है इसलिए इस्लाम में ऐसा जानवर खाना मना है जो ज़िबाह यानी हलाल न किया गया हो।
सबसे अच्छा मांस कोन सा है हलाल या हराम?
सबसे अच्छा और खाने लायक मांस हलाल का होता है क्योंकि इसमें जानवर के जिस्म से सारा खून बाहर निकल जाता है प्रहार खून में कोई बीमारी होती है तो वो भी खून से के साथ बाहर आ जाती है ।और गोश्त भी अच्छा रहता है ।
मुस्लिम हलाल क्यूं करते है ?
मुसलमान हलाल इस लिए करते है क्योंकि इस्लाम में हलाल तरीके से किए गए जानवर को ही खाने की अनुमति है । ऐसा जानवर जो हलाल नहीं किया गया है उसे इस्लाम में खाने से मना (हराम) बताया गया है। ओर अगर कोई मुसलमान जानबूझ कर बिना हलाल किया हुआ गोश्त खाता है तो वो बहुत बड़ा गुनाह कर रहा है।
हलाल कैसे किया जाता है?
हलाल करने के लिए सबसे पहले जानवर को जमीन पर लिटा दिया जाता है और फिर उसके गले में आगे की तरफ से 3 नसों को काटा जाता है खून की नस कटते ही सारा खून बह जाता है और दुआ पढ़ी जाती है और जानवर हलाल तरीके से ज़िबाह हो जाता है।
हलाल कोन सा जानवर है ?
बकरी, बकरा, गाय , भैंस, बैल, ऊंट, चिकन, मछली, खरगोश, हिरन , भेड़ ,
मांस को हलाल क्या बनाता है ?
मांस को हलाल इस्लामी तरीके से किया गया ज़िबाह मांस को हलाल बनाता है ज़िबाह मतलब जानवर को काटना जो इस्लामी तरीका होना चाहिए और जानवर भी हलाल यानी जिसे इस्लाम में खाने की अनुमति है वहीं जानवर होना चाहिए।
हराम कोन सा मांस है?
वो जानवर जिसे हलाल तरीके यानी इस्लामी तरीके से नही काटा गया हो उस जानवर का गोश्त हराम है।
क्या हलाल झटके से ज़्यादा दर्दनाक है?
नहीं बल्कि हलाल ही एक ऐसा तरीका है जिसमे जानवर को बोहोत कम तकलीफ होती है।और उसका गोश्त भी झटके से ज़्यादा अच्छा और स्वस्थ होता है।
झटका और हलाल में क्या अंतर है?
हलाल करने के लिए जानवर को आगे की तरफ से खून की नसों को काटा जाना चाहिए और पूरा खून निकल जाना चाहिए और इसके साथ कुछ दुआ भी पढ़ी जाती है।
जबकि झटके में एक ही बार में गर्दन के पीछे की तरफ से पूरी गर्दन काट दिया जाता है। जिससे खून की नसें ब्लॉक हो जाती है। ये मांस खाने लायक नहीं होता।
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