क्या कव्वाली सुनना जाइज़ है ?

 क्या कव्वाली सुनना जाइज़ है ?


इस्लामी भाईयो ! आज कल बुजुर्गाने दीन के मज़ारात पर उनके उस का नाम लेकर खूब मौज मस्तियां हो रही हैं और अपनी रंग रंगेलियों, बाजों, तमाशों, औरतों की छेड़छाड़ के मज़े उठाने के लिए अल्लाह वालों के मज़ारों को इस्तेमाल किया जा रहा है और ऐसे लोगों को न खुदा का खौफ है, न मौत की फिक्र और न जहन्नम का डर।


आज कुफ़्फ़ार व मुशरिकीन यह कहने लगे हैं कि इस्लाम भी दूसरे मज़हबों की तरह नाच, गानों, तमाशों, बाजों और बेपर्दा औरतों को स्टेजों पर लाकर बे हयाई का मुजाहिरा करने वाला मज़हब है लिहाजा अहले कुफ्र के इस्लाम कबूल करने की जो रफ्तार थी उसमें बहुत बड़ी कमी आ गई है।


मजहवे इस्लाम में बतौर लहव व लइब ढोल बाजे और मजामीर हमेशा से हराम रहे हैं। बुखारी शरीफ की हदीस है कि रसूलुल्लाह ने इरशाद फरमाया : "जरूर मेरी उम्मत में ऐसे लोग होने वाले हैं जो जिना, रेशमी कपड़ों, शराब और बाजों ताशों को हलाल ठहरायेंगे।" (सही बुखारी, जिल्द २. किताबुल अशरिवह, सहा ८३०) दूसरी हदीस में हुजूर नबीए करीम ने कियामत की निशानियां बयान करते हुए फरमाया : "कियामत के करीब नाचने गाने वालियों और बाजे ताशों की कसरत हो जाएगी।"


(तिर्मिजी मिश्कात यावे अशरातुरसाअह, सफहा ४७०) 

फतावा आलमगीरी जो अब से साढ़े तीन सौ साल पहले बादशाहे हिन्दुस्तान मुहीयुद्दीन औरंगजेब आलमगीर रहमतुल्लाहि तआला अलैह के हुक्म से उस दौर के तकरीबन सभी मुसतनद व मोतबर उलमाए किराम ने जमा होकर मुरत्तव फरमाई जो अरबी जवान (भाषा) में तकरीबन तीन हजार सफहात और छह जिल्दों पर फैला हुआ एक अजीम इस्लामी इन्साइक्लोपीडिया है। उस में लिखा है :


"सिमाअ, कव्वाली और रक्स (नाच कूद) जो आज कल के नाम निहाद सूफियों में राइज है यह हराम है इस में शिरकत जाइज नही।" 

(फतावा आलमगीरी, जिल्द ५, किताबुल कराहियह, बाब १७, सफहा ३५२)


आलाहज़रत मौलाना शाह अहमद रज़ा ख़ाँ साहब रदियल्लाहु तआला अन्हु का फतवा अरब व अजम में माना जा रहा है उन्होंने मजामीर के साथ कव्वालियों को अपनी किताबों में कई जगह हराम लिखा है। कुछ लोग कहते हैं मज़ामीर के साथ कव्वाली चिश्तिया सिलसिले में राइज और जाइज है। यह बुजुर्गाने चिश्तिया पर उनका खुला बोहतान है बल्कि उन बुजुर्गों ने भी मज़ामीर के साथ कव्वाली सुनने को हराम फ़रमाया है। सय्यिदना महबूद इलाही निजामुद्दीन देहलवी रहमतुल्लाह तआला अलैह ने अपने ख़ास खलीफा सय्यिदना फखरुद्दीन जरदारी से मराअलए कव्वाली के मुतअल्लिक एक रिसाला लिखवाया जिसका नाम 'कफुल किनाअ अन उसूलिरिसमाअ' है इसमें साफ लिखा है हमारे बुजुर्गों का सिमाअ इस मज़ामीर के बोहतान से बरी है (उनका सिमाअ तो यह है) सिर्फ कव्वाल की आवाज़ अशआर के साथ हो जो कमाल सनअते इलाही की ख़बर देते हैं।


कुतबुल अकताब सय्यिदना फरीदुद्दीन गंज शकर रहमतुल्लाहि तआला अलैह के मुरीद और सय्यिदना महबूबे इलाही निजामुद्दीन देहलवी रहमतुल्लाह तआला अलैह के खलीफा सय्यिदना मुहम्मद बिन मुबारक अलवी किरमानी रहमतुल्लाह तआला अलैह अपनी मशहूर किरताब 'सैरुल ओलिया' में तहरीर फरमाते हैं: "महबूबे इलाही ख्वाजा निजामुद्दीन देहलवी अलहिरहमतु वरिंदवान ने फरमाया कि चन्द शराइत के साथ सिमाअ हलाल है :


(१) सुनाने वाला मर्द कामिल हो छोटा लड़का और औरत न हो। 

(२) सुनने वाला यादे खुदा से गाफिल न हो।

 (३) जो कलाम पढ़ा जाए, फहरा, बेहयाई और मसखरगी न हो। 

(४) आलए सिमाअ यानी सारंगी मज़ामीर व रुबाब से पाक हो।

 (सैरुल औलिया, बाब १ दर सिमाअ, वज्द व रक्स, सफहा ५०१)


इसके अलावा 'सैरुल औलिया' शरीफ में एक और मकाम पर है कि एक शख्स ने हज़रते महबूबे इलाही ख़्वाजा निजामुद्दीन रहमतुल्लाह तआला अलैह से अर्ज किया कि इन अय्याम में बाज़ आस्तानादार दुरवेशों ने ऐसे मजमे में जहाँ चंग व रुबाब व मज़ामीर था, रक्स किया तो हज़रत ने फ़रमाया कि उन्होंने अच्छा काम नहीं किया जो चीज शरअ में नाजाइज है वह नापसन्दीदा है। उसके बाद किसी ने बताया कि जब यह जमाअत बाहर आई तो लोगों ने उन से पूछा कि तुम ने यह क्या किया वहाँ तो मजामीर थे तुम ने सिमाअ किस तरह सुना और रक्स किया? उन्होंने कहा हम इस तरह सिमाअ में डूबे हुए थे कि हमें यह मालूम ही नहीं हुआ कि यहाँ मज़ामीर हैं या नहीं। हज़रत सुल्तानुल मशाइख ने फरमाया यह कोई जवाब नहीं इस तरह तो हर गुनाहगार हरामकार कह सकता है।


(सैरुल औलिया, बाब ६, सफहा ५३०) 

यानी कि आदमी जिना करेगा और कह देगा कि मैं बेहोश था मुझको पता नहीं कि मेरी बीवी है या गैर औरत, शराबी कहेगा कि मुझे होश नहीं कि शराब पी या शरबत ।


इसके अलावा उन्हीं हजरते सव्विदना महबूबे इलाही निजामुद्दीन हक वालिदैन अलैहिर्रहमतु वरिंद्रवान के मलफूजात पर मुशतमिल उन्हीं के मुरीद व खलीफा हजरत ख्वाजा अमीर हसन अलाई सन्जरी की तसनीफ 'फवाइदुल फवाद शरीफ' में है।


हजरते महबूबे इलाही की ख़िदमत में एक शख्स आया और बताया कि फलां जगह आपके मुरीदों ने महफिल की है और वहाँ मज़ामीर भी थे हजरत महबूबे इलाही ने इस बात को पसन्द नहीं फरमाया और फरमाया कि मैंने मना किया है मजामीर (बाजे) हराम चीजें यहाँ नहीं होना चाहिए इन लोगों ने जो कुछ किया अच्छा नहीं किया इस बारे में काफी जिक्र फरमाते रहे। इसके बाद हज़रत ने फरमाया कि अगर कोई किसी मकाम से गिरे तो शरअ में गिरेगा और अगर कोई शरअ से गिरा तो कहाँ गिरेगा। 

(फवाइदुल फवाद, जिल्द ३. मजलिस पन्जुम, सफहा ५१२ मतबूआ उर्दू अकादमी, देहली, तर्जमा ख्वाजा हसन निज़ामी) 

मुसलमानो! जरा सोचो यह हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन देहलवी रदियल्लाहु तआला अन्हु का फतवा है जो तुमने ऊपर पढ़ा। इन अकवाल के होते हुए क्या कोई कह सकता है कि खानदाने चिश्तिया में मजामीर के साथ कव्वाली जाइज है? हाँ यह बात वही लोग कहेंगे जो चिश्ती हैं, न कादरी उन्हें तो मजेदारियां और लुत्फ अन्दोजियां चाहिए।


और अब जबकि सारे के सारे कव्वाल बे नमाज़ी और फासिक व फाजिर हैं। यहाँ तक कि बाज़ शराबी तक सुनने में आए हैं। यहाँ तक कि औरतों और अमरद लड़के भी चल पड़े हैं ऐसे माहौल में इन कुव्वालियों को सिर्फ वही जाइज कहेगा जिसको इस्लाम व कुआन, दीन व ईमान से कोई महब्बत न हो और हरामकारी, बेहायाई, बदकारी उसके रंग व पय में सराहत कर गई हो। और कुआन व हदीस के फ़रामीन की उसे कोई परवाह न हो। क्या इसी का नाम इस्लाम है कि मुसलमान औरतों को लाखों के मजमे में लाकर उनके गाने बजाने कराए जायें फिर उन तमाशों का नाम बुजुर्गों का उर्स रखा जाए काफिरों के सामने मुसलमानों और मज़हबे इस्लाम को जलील व बदनाम किया जाए?


कुछ लोग कहते हैं कि कव्वाली अहल के लिए जाइज़ और नाअहल के लिए नाजाइज़ है ऐसा कहने वालों से हम पूछते हैं कि आजकल जो कव्वालियों की मजलिसों में जो लाखों लाख के मजने होते हैं क्या यह सब अल्लाह वाले और असहावे इसतगराक हैं? जिन्हें दुनिया व मताए दुनिया का कतअन होश नहीं? जिन्हें यादे खुदा और ज़िक्रे इलाही से एक आन की फुरसत नहीं ?


खर्राटे की नींदों और गप्पों, शप्पों में नमाज़ों को गंवा देने वाले, रात दिन नंगी फिल्मों, गन्दे गानों में मस्त रहने वाले, मां बाप की नाफरमानी करने और उनको सताने वाले, चोर लकोर, झूटे फ़रेबी, गिरेहकाट वगैरा क्या सब के सब थोड़ी देर के लिए कव्वालियों की मजलिस में शरीक हो कर अल्लाह वाले हो जाते हैं? और उसकी याद में महव हो जाते हैं? या पीर साहब ने अहल का बहाना तलाश करके अपनी मौज मस्तियों का सामान कर रखा है? कि पीरी भी हाथ से न जाए और दुनिया की मौज मस्तियों में भी कोई कमी न आए। याद रखो कब्र की अंधेरी कोठरी में कोई हीला व वहाना न चलेगा। कुछ लोगों को यह कहते सुना गया है मजागीर के साथ


कव्वाली नाजाइज होती तो दरगाहों और खानकाहों में क्यूं होती? 

काश यह लोग जानते कि रसूले पाक की हदीसों और बुजुर्गाने दीन के मुकाबले में आजकल के फासिक दाढ़ी मुन्डाने वाले नमाज़ों को कसदन छोड़ने वाले बाज खानकारियों का अमल पेश करना दीन से दूरी और सख्त नादानी है जो हदीसें हमने ऊपर लिखी और बुजुर्गाने दीन के अकवाल नकल किये गए उनके मुकाबिल न किसी का कौल मोतबर होगा न अमल आजकल खानकाहों में किसी काम का होना उसके जाइज होने की शरई दलील नहीं है।


बाज खानकाहों की जबानी यह भी सुना कि हम कव्वालियां इसलिए कराते हैं कि ज्यादा लोग जमा हो जाये और उसे भारी हो जाए यह भी सख्त नादानी है गोया आपको अपनी नामवरी की फिक्र है आखिरत की फिक्र नहीं आपको कोई जानता न हो, 1 आपके पास कोई बैठता न हो, आप गुमनाम हों और हरामकारियों से बचते हो। नमाजों के पाबन्द हों, बीवी बच्चों के लिए हलाल रोजी कमाने में लगे हों और आपका परवरदिगार आप से राजी हो यह हज़ार दर्जे बेहतर है इससे कि आप मशहूरे जमाना शख्सियत हों। आपके हजारों मुरीद हों, हर वक्त हज़ारों मोअतकिदीन का झमगटटा लगा रहता हो या लाखों मजमे में बोलने वाले खतीब और मुकर्रिर हों बड़े अल्लामा व मौलाना शुमार किये जाते हों लेकिन हरामकारियों में इनहिमाक, नमाजों से गफलत, शोहरत व जाह तलबी, दौलत की नाजाइज हवस की वजह से मैदाने में महशर खुदाए तआला के सामने शर्मिन्दगी हो। कियामत के दिन खिफ्फत उठानी पड़े। वलइयाजु बिल्लाहि तआला कहीं जहन्नम का रास्ता न देखना पड़े।


मेरे भाईयो ! दिल में यह तमन्ना रखे यही खुदाए कदीर से दुआ किया करो कि ख्वाह हम मशहूरे जमाना पीर और दिलों मे जगह बनाने वाले खतीब हों या न हों लेकिन हमारा रब हम से राजी हो जाए ईमान पे मौत हो जाए और जन्नत नसीब हो जाए। और खुदाए तआला हमें चाहे थोड़ों में रखे लेकिन अच्छों और सच्चों में रखे फकीरी और दुरवेशी भीड़ और मजमा जुटाने का नाम नहीं है। फकीर तो तन्हाई पसन्द होते हैं और भीड़ से भागते हैं अकेले में यादे खुदा करते हैं। उनकी याद उनका तसव्वुर है उन्हीं की बातें


कितना आबाद मेरा गोशए तन्हाई है अखीर में एक बात यह भी बता देना ज़रूरी है कि रसूलुल्लाह ने इरशाद फरमाया कि "जो कोई खिलाफे शरअ काम की बुनियाद डालते है तो उस पर अपना और सारे करने वालों को गुनाह होता है।" लिहाजा जो मज़ामीर के साथ कव्वालियां कराते हैं और दूसरों को भी इसका मौका देते हैं उन पर अपना कव्वालों और लाखों तमाशाइयों का गुनाह है और


मरते ही उन्हें अपनी करतूतों का अन्जाम देखने को मिल जाएगा। हमारी इस तहरीर को पढ़ कर हमारे इस्लामी भाई बुरा न मानें बल्कि उन्हे दिल से सोचें अपनी और अपने भाईयों की इस्लाह की कोशिश करें।


अल्लाह तआला प्यारे मुस्तफा के सदके व तुफैल तौफीक बख़्शे ।

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