आला हज़रत की कलम से लिखा गया बेहतरीन कलाम
यहीं फूल खार से दूर है यही शम्मा है की धुआं नही
2-दो जहां की बहतारियां नही की अमानिये दिलों जां नही
कहो क्या है वो जो यहां नहीं मगर एक नही की वोह हां नही
3-मैं निसार तेरे कलाम पर मिलीं यूं तो किस को ज़बां नहीं
वोह सुखन है जिसमें सुखन न हो वोह बयां है जिस का बयां नहीं
4-बाखुदा खुदा का यहीं दर नहीं और कोई मफर मकर
जो वहां से ही यहीं आ के हो जो यहां नहीं तो वहां नहीं
5-करें मुस्तफा की इहानतें खुले बंदों उस पे यह जुरअतें
की मैं क्या नही हूं मोहम्मदी ! अरे हां नही अरे हां नही
6-तेरे आगे यूं हैं दबे लचे फूस–हा अरब के बड़े बड़े
कोई जाने मुंह में जबां नहीं, नही बल्कि जिस्म में जां नही
7-वोह शरफ की कतआ है निस्बतें वोह करम की सबसे करीब है
कोई कह दो यासो उम्मीद से वोह कहीं नहीं वोह कहां नहीं
8-यह नही की खुल्द न हो निकू वोह निकूई की भी है आबरू
मगर ऐ मदीने की आरज़ू जिसे चाहे तू वोह समां नही
9-है उन्ही के नूर से सब इयां है उन्ही के जलवे में सब निहां
बने सुबह ताबिशे मेहर से रहे पेशे मेहर यह जां नहीं
10-वहीं नूरे हक वहीं ज़िल्ले रब है उन्ही से सब है उन्ही का सब
नहीं उनकी मिल्क में आसमां कि ज़मी नहीं की ज़मां नहीं
11-वहीं ला मका के मकी हुए सरे अर्श तख्त नशी हुए
वोह नबी है जिस जिस के हैं यह मकां वोह खुदा है जिस का मका नहीं
12-सरे अर्श पर है तेरी गुज़र दिले फर्श पर है तेरी नज़र
म–लकूतो मूल्क में कोई शै नहीं वोह जो तुझ पे इयाँ नहीं
13-करूं तेरे नाम पे जां फिदा न बस एक जां दो जहां फिदा
दो जहां से भी नहीं जी भरा करूं क्या करोड़ों जहां नहीं
14-तेरे कद तो नदीरे दहर है कोई मिल्स हो तो मिसाल दे
नहीं गुल के पोदों में डालियां की चमन में सर्वे चमां नहीं
15-नही जिस के रंग का दूसरा न तो हो कोई न कभी हुआ
कहो उस को गुल कहे क्या बनी की गुलों का ढेर कहां नहीं
16-करूं मदहे अहले दुवल रज़ा पड़े इस बला में मेरी बला
मैं गदा हूं अपने करीम का मेरा दीन पारए नां नहीं
0 टिप्पणियाँ