ईशा और मगरिब की नमाज़ का वक्त कब तक रहता है।

 मगरिब और ईशा की नमाज़ कब तक पढ़ी जा सकती है।

इस पोस्ट में हम आपको बताएंगे की मगरिब और ईशा की नमाज़ का वक्त कब तक रहता है । कब तक आप नमाज़ बिना कज़ा किए पढ़ सकते है।
ईशा और मगरिब की नमाज़ का वक्त कब तक रहता है।


मगरिब की नमाज़ का वक्त कब तक रहता है?

काफी लोग थोड़ा सा अंधेरा होते ही यह समझते है की मगरिब की नमाज़ का वक्त निकाल गया । अब नमाज़ कज़ा हो गई और बे वजह नमाज़ छोड़ देते है या कज़ा की नियत से पढ़ते है ।

मगरिब की नमाज़ का वक्त सूरज डूबने के बाद से लेकर शफक तक है और शफक उस सफेदी का नाम है जो पश्चिम की तरफ सुर्खी डूबने के बाद उत्तर दक्षिण सुब्हे सादिक की तरह फैलती है ।

हां मगरिब की नमाज़ जल्दी पढ़ना मुस्तहब है और बिला उज्र दो रकातों की मिकदार देर लगाना मकरूहे तनजीही यानी खिलाफे ओला है । 

और बिला उजर इतनी देर लगाना जिसमे कसरत से सितारे ज़ाहिर हो जाएं मकरूह तहरीमी और गुनाह है।

(अहकामे शरीयत , सफा १३७)

हां अगर नमाज़ न पढ़ी हो तो पढ़े और जब तक ईशा का वक्त शुरू नही हुआ है अदा ही होगी , कज़ा नही। और यह वक्त सूरज डूबने के बाद कम से कम एक घंटा अट्ठारह मिनट और ज़्यादा से ज़्यादा एक घंटा पैंतीस मिनट है जो मौसम के लिहाज़ से घटता बढ़ता रहता है ।

ईशा की नमाज़ का वक्त कब तक रहता है?

ईशा की नमाज़ का वक्त १२ बजे तक रहता है यह भी गलत है । ईशा की नमाज़ का वक्त फर्ज़ सादिक तुलुअ होने यानी सहरी का वक्त खत्म होने तक रहता है । हां बिला वजह तिहाई रात से ज़्यादा देर करना मकरुह है।

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